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तिलाड़ी कांड के 90 बरस

तिलाड़ी कांड (उत्तराखंड का जलियवाला कांड) को हुए 90 बरस पूरे


उत्तराखंड! जो अपने आप में कई सांस्कृतिक परंपराओं को समेटे हुए है, जिसकी सुंदरता पर्यटकों का मन मोह लेती है, जहाँ हज़ारों तीर्थ स्थल मौजूद हैं। और उस उत्तराखंड का एक खूबसूरत जिला है "टिहरी" जो अपने अंंदर कई राज समेटे 
बैठा है , उनमें से ही एक राज है  तिलाड़ी कांड



तिलाड़ी कांड के विषय में शायद ही  बहुत ज्यादा लोग जानते हों  और इसमे गलती उनकी भी नहीं है क्योंकि ये कांड कभी ज्यादा चर्चा में आया ही नहीं ! 
ये बात है 30मई सन् 1930 की जब  टिहरी जिले में स्थित एक छोटे से गाँव "तिलाड़ी" के एक मैैदान में सैकडों लोग अपने 
अधिकारों के लिए, अपने हक की लडाई लड़ने के लिए जमा हुए।  कहा जाता है की टिहरी के तत्कालीन  राजा "नरेंद्र शाह" आम लोगों पर जुल्म करते थे और उनके अधिकारों की हर समय हत्या करते थे  जिससे वे लोग बहुुुुत परेशान थे। इसी का विरोध करने के लिए वे लोग सामूहिक रूप से वहाँ इकट्ठा हुए थे।
लेकिन उन मासूमों को शायद पता नहीं था की वो उनका आखिरी दिन साबित हो जायेगा, और न ही किसी ने सोचा था की राजा उन लोगों के साथ इतनी बर्बरता करेगा। 
सभी लोग वहाँ जमा होकर नारे लगा रहे थे और जोर शोर से अपने हक की लडाई लड़ रहे थे। 
तभी अचानक राजा के सारे सिपाहियों ने उस मैदान को तीनों तरफ से घेर लिया क्योंकि चौथी तरफ यामुना नदी बहती है इसलिए वो उन्हें वहाँ से नहीं घेर सकते थे
अचानक सारे सिपाहियों ने उन सैकडों लोगों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलानी शुरू कर दी। वहाँ पर जमा लोग बिल्कुल निहत्थे थे और इस अचानक हमले से वो सकपका गए, ज्यादा सोचने का समय नहीं था लोग मरते जा रहे थे कुछ लोग अपनी जान बचाने के लिए यमुना नदी की उफनती धारा में कूद गए  और यमुना के तेज बहाव में बह गए और लापता हो गए। वो सुंदर मैदान चंद पलों में ही कब्रिस्तान में बदल गया और पूरी धरती देखते ही देखते रक्तरंजित हो गयी। 
इस कायरता पूर्ण बर्बर हमले से लोग राजा से डर तो गए लेकिन सबकी नज़रों में राजा के लिए भयंकर गुस्सा था किंतु डर के कारण किसी ने कुछ नहीं किया।  
इस घटना का संपूर्ण विवरण विद्यासागर नौटियाल जी के उपन्यास  "यमुना के बागी बेटे" में मिलता है

आज अपने हक के लिए लड़े उन सैकड़ो बागियों की पुण्य स्मृति है 
ओम् शांति




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