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माधवी लता भेद पाएंगी ओवैसी का किला, या लौटेंगी उल्टे पांव वापस ?


देशभर में लोकसभा चुनाव के युद्ध की अंतिम रणभेरी बज चुकी है और इस युद्ध में दोनों गठबंधनों ने लगभग अपनी सेना सजा ली है, चुनावी मैदान में अपने उतकृष्ठ जवानों को भी उतार दिया है, इस चुनाव में कुछ ऐसी सीट्स हैं जिनमें जीत या हार से भले ही पार्टियों को एक सीट का फायदा हो लेकिन इनमें से कुछ सीटें ऐसी हैं जिनमें किसी भी पार्टी का जीतना एक नया इतिहास बनाने जैसा है । 
इन्ही सीटों में से एक सीट है तेलंगाना की हैदराबाद सीट। ये सीट पिछले 40 सालों से ओवैसी परिवार के ही पास रही है । साल 1984 में पहली बार असदुद्दीन ओवैसी के पिता सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी जीते थे इसके बाद 2004 में इस सीट से पहली बार असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव लड़ा और वे तब से लगातार जीतते आ रहे हैं । तमाम पार्टियों ने लाख कोशिशें की लेकिन हैदराबाद के इस किले को भेद नहीं पाए । उल्टा असदुद्दीन ओवैसी के जीत का अंतर हर चुनाव में बढ़ता गया ।

किस साल कितने अंतर से जीते ओवैसी ?

2004 में पहली बार चुनाव लड़ते हुए असदुद्दीन ओवैसी इस सीट से 1 लाख वोटों से जीते, 2009 में 1.13 वोट,  2014 में वोटों का अंतर असाधारण रूप से बढ़कर दो लाख के पार पहुंच गया और ओवैसी 2.02 लाख वोट से जीते और फिर 2019 में 2.82 लाख वोटों के अंतर से जीत दर्ज की ।
ये आंकड़े साफ दिखाते हैं कि ओवैसी का दबदबा हैदराबाद सीट पर कितना ज्यादा है । हालांकि 2024 का चुनाव हैदराबाद में एकतरफा नहीं रहने की उम्मीद है । बीजेपी ने इस सीट को भेदने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है । बीजेपी ने इस सीट से अपनी नई लेकिन फायरब्रांड नेत्री माधवी लता को चुनावी मैदान में उतारा है । माना जा रहा है कि माधवी लता इस सीट में ओवैसी को कड़ी टक्कर देने जा रही है और कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि वे जीतने का भी दम रखती हैं । शायद यही कारण है कि उन्होने अपनी कट्टर प्रतिद्वंदी पार्टी कांग्रेस से हाथ मिला लिया है ।  
ऐसे में सवाल ये है कि क्या बीजेपी इस सीट पर इतिहास रचेगी या ओवैसी फिर बाजी मार जाएंगे ? 
इसके लिए हैदराबाद सीट पर कुछ आंकड़ों पर नजर डालते हैं । 

क्या कहता है धार्मिक समीकरण ?


2011 की गणना के अनुसार हैदराबाद शहर में करीब 64.93 फीसदी हिन्दू रहते हैं और करीब 30 फीसदी मुस्लिम । वहीं लगभग पौने तीन फीसदी ईसाई रहते हैं ।

काम के मामले में कौन आगे ? 

अब दोनों के कार्यों पर नजर डाल लेते हैं । मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वे हैदराबाद के अलग-अलग इलाकों में जाकर विकास कार्य करते रहते हैं और साथ ही मुस्लिमों की मदद भी करते हैं । ओवैसी को हैदराबाद में इसलिए पसंद किया जाता है क्योंकि एक तो वे संसद और राष्ट्रीय मंचों पर मुस्लिमों की आवाज को बुलंद करते हैं और जब भी वे किसी दूसरे देश में जाते हैं तो वहां भी हिन्दुस्तान और देश में हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की बात करते हैं । पाकिस्तान के भी उनके तमाम वीडियोज सोशल मीडिया पर वायरल हुए हैं । 
वे खासतौर पर धार्मिक और जातीय समीकरण को साधने की कोशिश करते हैं । वहीं माधवी लता कई सालों से हैदराबाद में बिना जाति-धर्म को देखे गरीब और पिछड़े लोगों की मदद करती रही हैं । वे अपना अस्पताल तो चलाती ही हैं साथ ही चैरिटेबल ट्रस्ट भी चलाती हैं जिससे वे अक्सर मुस्लिम महिलाओं की भी मदद करती हैं और उनके बच्चों को भी पढ़ाई में उनके करियर में सहयोग करती हैं । ऐसे में वो वोटर्स जो ओवैसी के अलावा कोई दूसरा लेकिन बेहतर विकल्प ढूंढ रहे हैं उनके लिए माधवी लता एक अच्छी नेत्री साबित हो सकती हैं । 
माधवी लता उन मुस्लिम इलाकों में मदद करने पहुंची हैं जहां कट्टरवाद थोड़ा ज्यादा है । 

नेता नहीं माधवी लता की है समाजसेवी पहचान

कहा जाता है कि वह विभिन्न मुस्लिम महिला समूहों के संपर्क में हैं। माधवी लता, लातम्मा फाउंडेशन और लोपामुद्रा चैरिटेबल ट्रस्ट की ट्रस्टी हैं और निराश्रित मुस्लिम महिलाओं की आर्थिक मदद भी करती रहती हैं. वह एक गौशाला भी चलाती हैं. बीजेपी से टिकट की आकांक्षी रहीं लता ने पहले ही पुराने शहर के कुछ हिस्सों में महिलाओं से मिलना शुरू कर दिया था. पिछले महीने उन्होंने बुर्का पहनी महिलाओं के बीच राशन बांटते हुए अपनी तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट की थीं । इसके अलावा पनी संस्था के जरिए, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और भोजन वितरण कार्यक्रम आयोजित करती हैं। 
अपने मोबाइल नंबर पर मिस्ड कॉल से जरूरतमंदों को मदद भी करती हैं, वे हैदराबाद में ही पली-बढ़ी हैं और एक साधारण परिवार से रही हैं । खास बात ये है कि उनकी छवि नेता की कभी रही ही नहीं है । उन्होने हैदराबाद में लगभग हर तबके के लोगों के बीच एक समाजसेवी के तौर पर अपनी पहचान बनाई है । जो कि उन्हें चुनाव में फायदा दे सकता है । 

बीजेपी लड़ रही अकेले दो पार्टियों से

माना जा रहा है कि हैदराबाद में ओवैसी को वोट पाने के लिए बहुत पसीना बहाना पड़ेगा । हालांकि कांग्रेस के समर्थन से असदुद्दीन ओवैसी की स्थिति मजबूत हुई है । ऐसे में बीजेपी के लिए ये मुकाबला दो पार्टियों से लड़ने जैसा हो गया है । लेकिन अपने कामों के दम पर माधवी लता इस सीट से जीत सकती है या अगर नहीं भी जीत पाई तो कड़ी टक्कर तो जरूर देंगी जो ओवैसी के गढ़ को जीतना न सही सेंध लगाने जैसा तो जरूर साबित होगा । हालांकि AIMIM के कोर वोटर्स को अपनी ओर खींचना भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत टेढ़ी खीर है।

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